वित्तीय जरूरतों के चलते कर्ज लिमिट बढ़वाएगी मप्र सरकार

अभी जीडीपी के तीन फीसदी तक कर्ज लेने की लिमिट

खरी खरी संवाददाता

भोपाल, 18 जनवरी। अधोसंरचान विकास से जुड़े कामों में तेजी लाने के लिए धन की आवश्यकता के चलते मप्र सरकार कर्ज लेने की सीमा बढ़वाने की कोशिश में जुट गई है। अभी सरकार अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का तीन प्रतिशत तक कर्ज ले सकती है। मप्र पर कर्जा इस लिमिट तक पहुंच जाने के कारण सरकार इसे बढ़वाकर चार प्रतिशत तक करवाना चाह रही है।

मध्यप्रदेश में करीब दो दशक से राजनीतिक स्थिरता के चलते विकास के कामों  में तेजी आई है। सरकार अधोसंरचना के विकास पर विशेष जोर दे रही है। इसलिए बजट का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके साथ ही जनकल्याणकारी कामों के लिए भी उसे वित्तीय संसाधनों की भारी जरूरत पड़ रही है। इसके लिए सरकार को लगातार कर्ज लेना पड़ रहा है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में सरकार अब तक 30 हजार करोड़ का कर्ज ले चुकी है। इसे मिलाकर सरकार पर कुल कर्ज करीब चार लाख करोड़ हो गया है। लेकिन अधोसंरचना विकास के लिए वित्तीय संसाधनों की जरूरत लगातार पड़ रही है।

साल 2028 में उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ की तैयारियों के लिए भी सरकार को बड़ी धनराशि की जरूरत है। सिंहस्थ के लिए अधोसंरचना तैयार करने का काम सिर्फ उज्जैन में नहीं होगा बल्कि इंदौर और आसपास के अन्य जिलों में भी होंगे। सरकार सिंहस्थ आयोजन को सुविधाओं की दृष्टि से प्रयागराज महाकुंभ से बेहतर बनाने की तैयारी में है। इसलिए अतिरिक्त बजट की आवश्यकता बनी हुई है। ऐसे में सरकार के पास कर्ज लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। सरकार कर्ज लेने की लिमिट तक पहुंच गई है, इसलिए कर्ज की लिमिट बढ़वाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। इसलिए सरकार 16वें वित्त आयोग के सामने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के अनुपात में चार प्रतिशत तक कर्ज लेने की अनुमति मांगने की तैयारी में है। मुख्यमंत्री डा मोहन यादव की केंद्र में अच्छे परफार्मर की छवि के चलते सरकार को उम्मीद है कि उसकी मांग मान ली जाएगी। वित्त विभाग के सूत्रों का कहना है कि प्रदेश की वित्तीय स्थिति अच्छी है। एक बार भी राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हुआ है। सरकार जो भी कर्ज भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से सरकार ले रही है, उसका उपयोग पूंजीगत कार्यों यानी अधोसंरचनात्मक विकास पर ही किया जा रहा है। यदि केंद्र सरकार प्रदेश की मांग पर सहमत हो जाती है तो अधिक राशि उपलब्ध हो जाएगी, जिससे विकास कार्यों को गति मिलेगी।

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