लंबी प्रक्रिया से होता है बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव

खरी खरी संवाददाता

नई दिल्ली। केंद्र में करीब 12 साल से सत्तारूढ़ और देश के आधे से ज्यादा राज्यों की सरकार चला रही भारतीय जनतापार्टी में राष्ट्रीय संगठन का चुनाव लगातार टलता जा रहा है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को केंद्र सरकार में मंत्री बने साल पूरा होने जा रहा है लेकिन उनके उत्तराधिकारी का चयन अभी तक नहीं हो पाया है। यह पहला मौका है जब भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष को दो साल से एक्सटेंशन मिल रहा है। लगातार मिल रही चुनावी सफलताओं ने बीजेपी के प्रबंध तंत्र को नेतृत्व बदलाव की चिंताओं से मुक्त कर दिया है। बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव बहुत सरल प्रक्रिया नहीं है। पार्टी के संविधान के उपबंधों का पालन करते हुए चुनाव कराने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन राजनीतिक समीकरण बहुत सारी सहजताएं पूरी प्रक्रिया मे ला देते हैं।

बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का ‘चुनाव’ निर्वाचक मंडल करता है, जिसमें राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और प्रदेश परिषदों के सदस्य शामिल होते हैं। बीजेपी संविधान में ये भी लिखा है कि निर्वाचक मंडल में से कोई भी बीस सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के नाम का संयुक्त रूप से प्रस्ताव कर सकते हैं। यह संयुक्त प्रस्ताव कम से कम ऐसे पांच प्रदेशों से आना ज़रूरी है जहां राष्ट्रीय परिषद के चुनाव संपन्न हो चुके हों। साथ ही साथ नामांकन पत्र पर उम्मीदवार की स्वीकृति आवश्य होनी चाहिए। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार ”बीजेपी के संविधान को देखें, यदि उनकी औपचारिकताओं को देखें तो बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले ज़िला संगठनों के चुनाव, प्रदेश संगठन और राष्ट्रीय परिषद के चुनाव होते हैं।” संगठन की दृष्टि से बीजेपी ने भारत को 36 राज्यों में बांट रखा है और आधे से ज़्यादा राज्यों के संगठन के चुनाव होने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होता है। शुरुआत से ही आज तक बीजेपी में संविधान की प्रक्रिया तो यही है लेकिन अध्यक्ष का चुनाव सामूहिक विचार करके सर्वसम्मति से करते हैं। इसलिए पिछले क़रीब 45 साल में किसी अध्यक्ष के लिए वोटिंग नहीं हुई है। बीजेपी में कभी किसी अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए वोटिंग नहीं हुई है। कोशिश ये होती है कि बीजेपी के लोग और संघ के लोग आपस में विचार विमर्श करते हैं और पार्टी की ज़रूरत को ध्यान में रखकर अध्यक्ष का चयन किया जाता है।

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, “राजनीति दलों में बीजेपी कोई अपवाद नहीं है। पार्टी का अध्यक्ष चुनने की कवायद लोकतांत्रिक ढंग से नहीं की जाती है। इसके लिए सदस्य वोट नहीं देते हैं. बीजेपी में कभी इस पद के लिए वोटिंग नहीं हुई है। कांग्रेस में भी यही होता रहा है।” “इसका एक अच्छा पहलू यह है कि नेताओं के बीच टकराव नहीं होता है, इसलिए राजनीतिक दल आम राय से पार्टी अध्यक्ष चुनता है, जो काम पार्टी का राजनीतिक चेहरा करता है।” “अक्सर सवाल खड़ा किया जाता है कि संघ बीजेपी को कोई दिशा निर्देश दे रहा है। ये कहना कि संघ का कोई दख़ल नहीं होता है और ये भी कहना कि संघ ने निर्देश दे दिया है और इस नाम पर पर्ची बना दी है, ये ठीक नहीं है। लेकिन दोनों में विचार विमर्श ज़रूर होता है।” ऐसा पहली बार हो रहा है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को इतने लंबे समय तक एक्सटेंशन पर चलाया जा रहा है।

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