रविवार को साल का आखिरी चंद्रग्रहण पूरे भारत में दिखेगा

खरी खरी संवाददाता
भोपाल। रविवार का दिन खगोलशास्त्रियों और अंतरिक्ष प्रेमियों के लिए काफ़ी ख़ास है। आज भारत सहित दुनिया के कई देशों में पूर्ण चंद्र ग्रहण देखा जा सकेगा। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण एक ‘ब्लड मून’ में बदल जाएगा यानी चंद्रमा लाल रंग का और सामान्य से ज़्यादा बड़ा दिखाई देगा। पूर्वी अफ़्रीका, यूरोप, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और भारत सहित एशिया के अधिकांश देशों में यह खगोलीय घटना शुरू से अंत तक स्पष्ट रूप से देखी जा सकेगी। यह इस साल का आख़िरी चंद्र ग्रहण होगा और पूरे भारत में दिखाई देगा।
भारत के अधिकांश राज्यों में यह पूर्ण चंद्र ग्रहण देखा जा सकेगा।
उत्तर भारत: दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर और लखनऊ
पश्चिम भारत: मुंबई, अहमदाबाद, पुणे
दक्षिण भारत: चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद और कोच्चि
पूर्वी भारत: कोलकाता, भुवनेश्वर, गुवाहाटी।
इसके अलावा मध्य भारत के भोपाल, नागपुर और रायपुर सहित कई अन्य शहरों में भी यह चंद्र ग्रहण दिखाई देगा।
चंद्र ग्रहण की शुरुआत भारतीय समय के मुताबिक़ 7 सितंबर को रात 8:58 बजे होगी।
पूर्ण चंद्र ग्रहण (ब्लड मून चरण) रात 11:00 बजे से 12:22 बजे तक होगा।
चंद्र ग्रहण ख़त्म होने का समय होगा मध्य रात्रि के बाद यानी 8 सितंबर सुबह 2:25 बजे।
कब लगता है चंद्र ग्रहण?
चंद्रमा की अपनी रोशनी नहीं होती है। सूरज की किरणें जब चंद्रमा पर पहुंचती हैं तो यह वहां से रिफ़्लेक्ट (परावर्तित) होती हैं और इसी से चांद चमकता है या हमें वह चमकता हुआ दिखाई देता है। सूर्य की परिक्रमा के दौरान चांद और सूर्य के बीच पृथ्वी इस तरह आ जाती है कि चांद धरती की छाया से छिप जाता है यानी सूरज की रोशनी चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाती है। यह तभी संभव होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा अपनी कक्षा में एक दूसरे की बिल्कुल सीध में हों। पूर्णिमा के दिन जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इससे चंद्रमा का छाया वाला भाग अंधकारमय रहता है। इस स्थिति में जब हम धरती से चांद को देखते हैं तो वह भाग हमें काला दिखाई देता है। इसी वजह से इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
ब्लड मून क्या होता है
चंद्र ग्रहण के दौरान कई बार चंद्रमा पूरी तरह लाल भी दिखाई देता है। इसे ब्लड मून कहते हैं। नासा के मुताबिक़ सूरज की किरणें धरती के वातावरण में घुसने के बाद मुड़ती हैं और फैलती हैं। नीला या वायलेट रंग, लाल या नारंगी रंग के मुक़ाबले अधिक फैलता है।चंद्रमा का लाल रंग “रेली स्कैटरिंग” नाम की एक प्रक्रिया के कारण होता है। इसी प्रक्रिया की वजह से आकाश का रंग नीला दिखता है, सूर्यास्त और सूर्योदय के वक्त सूरज लाल दिखता है।इस प्रक्रिया में छोटी वेवलेंथ की नीली रोशनी अधिक बिखर जाती है जिससे लाल रंग सीधी दिशा में आगे बढ़ता है और इंसान की आंखों को दिखता है। सूर्योदय और सूर्यास्त के वक़्त सूर्य की किरणें धरती के वायुमंडल की एक मोटी परत को पारकर हमारी आंखों तक पहुंच रही होती हैं।चंद्र ग्रहण के दौरान सूर्योदय या सूर्यास्त के समय की बची हुई लाल किरणें पृथ्वी के वातावरण से होते हुए चांद की सतह तक पहुंच जाती हैं। इसलिए ग्रहण के दौरान चंद्रमा हमें लाल दिखने लगता है।पृथ्वी के वातावरण में ग्रहण के दौरान जितने ज़्यादा बादल या धूल होगी, चांद उतना ही ज़्यादा लाल दिखेगा।