बड़ी पहलः पहली बार प्रजनन केंद्र से प्राकृतिक वातावरण में छोड़े गए 6 गिद्ध

खरी खरी संवाददाता

भोपाल। मध्य प्रदेश ने जैव विविधता और परिस्थितिकी संतुलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भोपाल के केरवा गिद्ध प्रजनन केंद्र से छह गिद्धों को पहली बार उनके प्राकृतिक वातावरण में छोड़ा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस पहल को राज्य में वन्यजीव संरक्षण और पर्यटन के क्षेत्र में नए अध्याय की शुरुआत बताया है।

भोपाल स्थित केरवा गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र की स्थापना वर्ष 2014 में की गई थी। लगभग साढ़े पांच एकड़ क्षेत्र में फैले इस केंद्र में सफेद पीठ वाले (Gyps bengalensis) और लंबी चोंच वाले (Gyps indicus) गिद्धों को संरक्षित किया गया है। वर्ष 2017 में इस केंद्र में पहला सफेद पीठ वाला गिद्ध का चूजा अंडे से बाहर आया था, जिससे केंद्र की प्रजनन योजना को सफलता मिली थी।  गिद्धों की घटती संख्या को देखते हुए इस संरक्षण पहल की अहमियत और भी बढ़ जाती है। एक समय भारत में गिद्धों की संख्या चार करोड़ से अधिक थी, लेकिन 2000 तक इनकी संख्या में लगभग 99% की गिरावट दर्ज की गई। इसके पीछे डाइक्लोफेनेक नामक पशु चिकित्सा दवा को प्रमुख कारण माना गया, जिस पर अब केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगाया है। इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं – 2021 में मध्यप्रदेश में 9,446 गिद्ध, 2024 में 10,845 गिद्ध, और 2025 की पहली गणना में यह संख्या 12,000 से अधिक पहुंच चुकी है।

मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने कहा कि गिद्धों जैसी संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण केवल वन्यजीवों के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यावरण की निरंतरता के लिए भी अनिवार्य है। उन्होंने बताया कि इन गिद्धों पर सौर ऊर्जा चलित जीपीएस ट्रैकर्स लगाए गए हैं, जिनसे उनके आवागमन, व्यवहार और सुरक्षा की निरंतर निगरानी की जा सकेगी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने इस मौके पर यह भी उल्लेख किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीता पुनर्वास कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के बाद अब मध्यप्रदेश गिद्ध संरक्षण के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय उदाहरण बन रहा है। इस प्रयास से यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार जैव विविधता के संरक्षण और संकटग्रस्त प्रजातियों के पुनर्स्थापन के लिए दीर्घकालिक और वैज्ञानिक रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है।

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