बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार माने जा रहे कफ सिरप में जहर नहीं मिला

खरी खरी संवाददाता
भोपाल। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में पिछले एक माह में नौ बच्चों की मौत कफ सिरप से होने के मामले में नया मोड़ आ गया है। बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार माने जा रहे कफ सिरप में ऐसा कोई जहरीला (दूषित) केमिकल डायथिलीन ग्लाइकाल (डीईजी) या एथिलीन ग्लाइकाल (ईजी) नहीं पाया गया है जिससे बच्चों की मौत हो सके।
सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड एवं कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन में छह और राज्य औषधि प्रयोगशाला में तीन सैंपलों की जांच में इसकी पुष्टि हुई है। एक सैंपल में लेप्टोस्पाइरा बैक्टीरिया के कारक लेप्टोस्पायरोसिस संक्रमण मिला है, पर डाक्टरों का कहना है कि इससे मौत नहीं हो सकतीबता दें कि राजस्थान में इसी तरह से दो बच्चों की मौत हुई है। ऐसे में, दोनों प्रदेशों में बच्चों की मौत का आंकड़ा 11 है। मध्य प्रदेश में अभी भी 13 बच्चों का उपचार चल रहा है। इनमें तीन की हालत गंभीर बताई जा रही है। दोनों राज्यों में ये मामले आने के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों के लिए एडवाइजरी जारी की है। इसमें खांसी के सिरप के तर्कसंगत उपयोग के लिए कहा गया है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप देने में विशेष सावधानी रखने को कहा गया है।
बच्चों में वायरल संक्रमण जैसे लक्षण दिखे
बता दें कि छिंदवाड़ा जिले के परासिया कस्बा क्षेत्र में गत चार सितंबर से बच्चों में वायरल संक्रमण जैसे लक्षण दिखे थे। इसके बाद पेशाब रुकने की समस्या हुई। किडनी में हल्का संक्रमण भी पाया गया। नई बीमारी या दवा के दुष्प्रभाव की आशंका में नेशनल सेंटर फार डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी), नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलाजी (एनआइवी) और सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) की टीम ने जांच की। खाद्य एवं औषधि प्रशासन के नियंत्रक दिनेश मौर्य के अनुसार, 19 सैंपल लिए गए थे, जिनमें नौ की रिपोर्ट आ गई है। अभी तक किसी सैंपल में दूषित डीईजी या ईजी नहीं मिला है।
दो वर्ष से छोटे बच्चों को खांसी का सिरप नहीं दें
- केंद्र के स्वास्थ्य स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक ने एडवाइजरी में कहा है कि बच्चों को कफ सिरप का विवेकपूर्ण उपयोग करें। बच्चों में तीव्र खांसी की बीमारियां स्वतः ही ठीक हो जाती हैं, दवा की आवश्यकता नहीं होती।
- दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खांसी और सर्दी की दवाएं नहीं दी जानी चाहिए। आमतौर पर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए यह अनुशंसा नहीं की जाती है। बहुत जरूरत लगने पर जांच, निगरानी कर उचित खुराक देनी चाहिए।
- बीमारी में पर्याप्त पानी पीएं और आराम करें।
- राज्य सरकारे डॉक्टरों और फार्मासिस्टों को इसके बारे में बताए।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट वीके रामनानी ने कहा कि लेप्टोस्पायरा एक जीवाणु है, जो संक्रमित जानवरों के मूत्र, दूषित पानी में पाया जाता है। शरीर में कहीं खरोंच है तो इस पानी के संपर्क में आने पर व्यक्ति इससे संक्रमित हो सकता है और जान भी जा सकती है। पर, कफ सीरप पेट में जाता है, इसलिए इसमें लेप्टोस्पायरा नुकसान नहीं करेगा। दूसरा, कफ सीरप में अल्कोहल रहता है, इस कारण इसमें यह जीवित नहीं रहेगा।