नेपाल में अंतरिम सरकार के लिए सुशीला कार्की का नाम सबसे ऊपर

खरी खरी संवाददाता

काठमांडू। नेपाल में जेन जी आंदोलन की क्रांति के बाद सरकार निहीन व्यवस्था में अंतरिम सरकार के गठन की कवायद तेज हो गई है। पिलहाल अंतरिम सरकार की मुखिया के तौर पर देश की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की का नाम पर सबसे अधिक पसंद किया जा रहा है। लेकिन जेन जी का ही एक धड़ा उन्हें भारत समर्थक बताते हे उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री बनाए जाने के खिलाफ है। यह धड़ा बालेन शाह के अंतरिम प्रधानमंत्री बनाना चाहता है।

नेपाल में ‘जेन ज़ी’ आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफ़ा दे दिया था। नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल अभी भी अपने पद पर बरकरार हैं। सड़कों पर सेना गश्त लगा रही है। अब अंतरिम सरकार के गठन के लिए देश में कोशिशें शुरू हो गई हैं। अंतरिम सरकार की प्रमुख के तौर पर सुशीला कार्की का नाम सामने आ रहा है। न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स की ख़बर के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव रमण कुमार कर्ण ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने परामर्श में कहा कि वे चाहते हैं कि सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया जाए। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों की पहली पसंद नेपाल की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की ही हैं।युवाओं के बीच मशहूर और लोकप्रिय रैपर, साथ ही काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने भी सुशीला कार्की के नाम का समर्थन किया है। लेकिन इस ‘जेन ज़ी’ आंदोलन का कोई तय चेहरा नहीं है, न ही कोई ऐसा ग्रुप है जो अकेले दम पर फ़ैसले ले। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि अंतरिम सरकार के दावेदारों के नाम सामने कैसे आ रहे हैं। इन्हें चुन कौन रहा है और किस आधार पर यह सब तय हो रहा है।

नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र फुयाल कहते हैं कि सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि ‘जेन ज़ी’ आंदोलन का कोई एक चेहरा नहीं है। उनका कहना है, “रातों-रात भी नए ‘जेन ज़ी’ ग्रुप बने हैं। यानी आवाज़ें कई दिशाओं से उठीं, लेकिन मक़सद एक ही था, बदलाव और साफ़ नेतृत्व।” फुयाल बताते हैं कि नेपाल का सेना मुख्यालय, जिसे पहले ‘जंगी अड्डा’ कहा जाता है, वहाँ से आंदोलनकारियों को कहा गया कि वे अपनी माँगें साफ़ करके सामने रखें। जैसे ही यह औपचारिक बातचीत शुरू हुई, ऑनलाइन को-ऑर्डिनेशन तेज़ हो गया। चर्चा डिस्कॉर्ड तक पहुँची।

यह वही प्लेटफ़ॉर्म है जहाँ बड़े ग्रुप एक साथ जुड़कर बातचीत कर सकते हैं, चैनल बना सकते हैं और पोल या वोटिंग कर सकते हैं। फुयाल कहते हैं, “डिस्कॉर्ड पर कल करीब दस हज़ार लोग जुड़े थे। वहाँ वोटिंग करवाई गई कि किसे चुना जाए। कई नाम आए, लेकिन सबसे ज़्यादा वोट सुशीला कार्की के नाम पर पड़े।” हालांकि फुयाल मानते हैं कि डिस्कॉर्ड पर जिन लोगों ने वोट दिया, उनकी पहचान पर सवाल उठना स्वाभाविक था। ऑनलाइन मंच पर हर प्रोफ़ाइल की पुष्टि करना आसान नहीं। वो कहते हैं, “कुछ नकली प्रोफ़ाइल भी हो सकते हैं। फिर भी मान लें कि ज़्यादातर असली थे। अलग-अलग ग्रुप थे और सबकी राय एक जैसी नहीं थी, फिर भी रुझान साफ़ दिखा। वोटिंग में बहुमत का समर्थन कार्की के पक्ष में आया। सुरेंद्र फुयाल कहते हैं कि बालेन शाह का नाम भी शुरुआती चर्चाओं में आया। वे युवाओं के प्रतीक हैं और काठमांडू के मेयर के रूप में लोकप्रिय भी। लेकिन उन्होंने अंतरिम नेतृत्व लेने के बजाय चुनावी प्रक्रिया को प्राथमिकता दी। वो कहते हैं, “बालेन शाह ने भी सुशीला कार्की के नाम का समर्थन कर दिया। इससे दो बातें साफ़ हुईं। एक, युवाओं के बीच सुशीला कार्की की स्वीकार्यता बढ़ी। दो, बालेन शाह ने सैद्धांतिक तौर पर यह बताया कि अंतरिम सरकार का लक्ष्य चुनाव तक देश को सुरक्षित ले जाना है। इस समर्थन ने कार्की के नाम को और मजबूती दी।”

अब बात प्रक्रिया के औपचारिक हिस्से की। सुरेंद्र फुयाल बताते हैं कि नेपाल की सेना ने साफ़ कहा है कि सभी हिस्सेदारों से बात करके ही राउंड टेबल बैठक की जाएगी। इसमें राजनीतिक दल, क़ानूनी विशेषज्ञ और सिविल सोसाइटी के लोग शामिल होंगे। इससे पहले ‘जेन ज़ी’ आंदोलन से प्रतिनिधि चुने जाने की बात सामने आई है। ये प्रतिनिधि अपनी माँगों की लिस्ट को छोटा करेंगे ताकि राउंड टेबल में बातचीत ठोस बिंदुओं पर हो सके। फुयाल कहते हैं, “सेना कह रही है कि सभी स्टेकहोल्डर से बात करके ही राउंड टेबल होगा। वहाँ सर्वसम्मति बनी तो उसके बाद ही फ़ाइनल होगा।”यानी अभी सुशीला कार्की का नाम आगे है, लेकिन अंतिम मुहर सहमति के बाद ही लगेगी। राष्ट्रपति की भूमिका भी उतनी ही अहम है। नेपाल के राष्ट्रपति सेना के सुप्रीम कमांडर होते हैं और इस बातचीत को आगे बढ़ा रहे हैं। अगर सहमति बनती है तो अंतरिम सरकार के गठन की औपचारिक प्रक्रिया पूरी की जाएगी। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि डिस्कॉर्ड पर हुई चर्चा पूरी तरह सार्वजनिक थी। जो कुछ वहाँ हुआ, वह सबके सामने आ चुका है। यही वजह है कि आधिकारिक घोषणा न होने के बावजूद सुशीला कार्की का नाम सबसे आगे माना जा रहा है। फुयाल का कहना है, “अभी तक सेना के पास औपचारिक रूप से नाम नहीं गया। अगले चौबीस घंटे में दूसरा नाम भी आ सकता है। फ़िलहाल तो यही (सुशीला कार्की) आगे हैं।”

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