दुलार चंद की हत्या से बिहार चुनाव में बाहुबलियों की धमक

खरी खरी संवाददाता

पटना। जन सुराज पार्टी के नेता दुलार चंद की हत्या ने बिहार विधानसभा चुनाव में नई गर्माहट ला दी है। इस हत्याकांड ने बिहार में बाहुबलियों की सियासत की तस्वीर दिखा दी है। दुलार चंद की हत्या के मामले में मोकामा के पूर्व विधायक और बाहुबली नेता अनंत सिंह को शनिवार देर रात पटना पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है।  

दुलार चंद की हत्या की घटना के बाद इलाक़े में तनाव का माहौल बना हुआ है और आरोप लगाए जा रहे हैं बिहार एक बार फिर से चुनावी हिंसा और अपराध के दौर में चला गया है।दुलारचंद यादव की छवि भी बाहुबली नेता वाली थी और वे जन सुराज पार्टी के पीयूष प्रियदर्शी के समर्थन में प्रचार कर रहे थे। जबकि अनंत सिंह को मोकामा विधानसभा सीट से जनता दल यूनाइटेड ने चुनाव मैदान में उतारा है। इसी सीट से वीणा देवी आरजेडी की उम्मीदवार हैं जो पूर्व सांसद और बाहुबली के तौर पर पहचान रखने वाले सूरजभान सिंह की पत्नी हैं। सूरजभान सिंह की पत्नी को जब राष्ट्रीय जनता दल ने इस सीट से चुनाव मैदान में उतारा था, तभी से मोकामा सीट बिहार की हॉट सीट में से एक बन गयी थी।सार्वजनिक तौर पर अनंत सिंह अक्सर कई लोगों के बीच में दिखते हैं। उनके कई बयान और वीडियो सोशल मीडिया पर कई बार सुर्खियों में रहे हैं। अनंत सिंह जिस तरह बात करते हैं और जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, वह भी कई बार चर्चा में रहा है। चुनाव आयोग को सौंपे गए एफ़िडेविट के मुताबिक़ उनका पूरा नाम अनंत कुमार सिंह है। उनके पिता का नाम चंद्रदीप कुमार सिंह है। उनका पैतृक घर लदमा गांव में है, जो बाढ़ विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है।अनंत सिंह की पत्नी का नाम नीलम देवी है जो ख़ुद भी मोकामा सीट से विधानसभा चुनाव जीत चुकी हैं। उनकी जीत को भी मोकामा इलाक़े में अनंत सिंह की छवि और उनकी ताक़त से जोड़ा जाता है। चुनाव आयोग को सौंपी गई जानकारी के मुताबिक़ अनंत सिंह के ख़िलाफ़ कुल 28 आपराधिक मामले दर्ज हैं। हालांकि किसी भी मामले में अब तक उनको दोषी नहीं ठहराया गया है। इनमें क़त्ल, जान से मारने की धमकी देने, जान से मारने की कोशिश, अपराधियों को संरक्षण देने, आपराधिक षडयंत्र रचने, धमकी, गाली-गलौज करने, अवैध हथियार रखने, सरकारी आदेशों का उल्लंघन करने, अपहरण, चोरी और डकैती के लिए इकट्ठा होने जैसे कई आरोप शामिल हैं। इससे पहले जनवरी महीने में भी अनंत सिंह ने एक आपराधिक मामले में सरेंडर किया था। बाढ़ कोर्ट में सरेंडर के बाद अनंत सिंह को न्यायिक हिरासत में पटना के बेऊर जेल भेज दिया था।

बाढ़ कोर्ट परिसर से बाहर निकलते हुए अनंत सिंह ने मीडिया से कहा था, “नियम सरकार का होता है, नियम पालन करना होता है। हमारे ख़िलाफ़ एफ़आईआर किया गया तो हम सरेंडर किए और जेल जा रहे हैं।” ये मामला सोनू-मोनू गिरोह से जुड़ा हुआ था। दरअसल 22 जनवरी की शाम राजधानी पटना से 110 किलोमीटर दूर नौरंगा जलालपुर गांव में दो गुटों के बीच गोलीबारी की एक घटना हुई थी, जिसका आरोप अनंत सिंह पर लगा था।इन दोनों गुटों के बीच पुरानी दुश्मनी रही है। 22 जनवरी को हुई गोलीबारी की घटना के बाद 23 जनवरी को अनंत सिंह और सोनू दिन भर मीडिया इंटरव्यू के जरिए एक-दूसरे को ललकारते रहे। इससे पहले अनंत सिंह अगस्त 2024 में ही आर्म्स एक्ट में बरी होकर जेल से बाहर आए थे। एडीआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह द्वारा दाखिल एफ़िडेविट के अनुसार उन पर 38 आपराधिक मामले दर्ज हैं।

पटना के फतुहा से लेकर लखीसराय विधानसभा क्षेत्र तक का इलाक़ा ‘टाल’ कहलाता है। गंगा के मैदानी भाग में बसा यह इलाक़ा निचले क्षेत्र में आता है।हर साल बारिश की वजह से आने वाली बाढ़ ऐतिहासिक तौर पर इस इलाक़े में झगड़े का बड़ा कारण रही है। बाढ़ के बाद खेत के मेड़ कट जाने से अपने-अपने खेतों की पहचान और ज़मीन पर अधिकार की लड़ाई का इतिहास यहां काफ़ी पुराना रहा है। हालांकि यही बाढ़ इलाक़े में मिट्टी को खेती के लिहाज से बेहतरीन बना देती है। वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद बताते हैं, “ज़मीन पर क़ब्ज़े का यह हाल बिहार के हर बाढ़ प्रभावित इलाक़े में था। जो जाति जहां ताक़तवर थी वो वहां दूसरों की ज़मीन पर खेती कर लेते थे। ज़मीन का कटाव और उसकी लड़ाई में लोग गुटों में बंट जाते हैं और फिर यह लड़ाई गिरोहों के बीच की लड़ाई बन जाती है।टाल का इलाक़ा दलहन की पैदावार के लिए उपजाऊ माना जाता है और मोकामा का इलाक़ा दाल के लिए पुराने समय से मशहूर रहा है। यहां उगाई गई दाल पहले बांग्लादेश तक भेजी जाती थी।

लखीसराय को पूर्वी भारत में अनाजों के बड़े बाज़ार के तौर जाना जाता रहा है। लेकिन बाद में ये इलाका अनंत सिंह और बाहुबल के लिए चर्चा में रहा है। इस इलाके़ में दिलीप सिंह, अनंत सिंह, सूरजभान सिंह, नलिनी रंजन शर्मा (ललन सिंह) जैसे दर्जनों बाहुबली रहे हैं।आज़ादी के बाद इस इलाक़े में कई बड़ी फैक्ट्रियां लगाई गई थीं। यह एक औद्योगिक क्षेत्र के तौर पर भी जाना जाता था। यहां यूनाइटेड स्पिरिट (मैकडॉवेल), नेशनल टेक्सटाइल कॉरपोरेशन, भारत वैगन एंड इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड और बाटा लेदर फैक्ट्री थीं लेकिन ये सब धीरे-धीरे बंद होते चले गए और इस पूरे इलाक़े की पहचान सिर्फ़ बाहुबलियों से होने लगी।

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