झारखंड के शिल्पकार दिशोम गुरुजी शिबू सोरेन नहीं रहे

खरी खरी संवाददाता
नई दिल्ली। झारखंड राज्य के शिल्पकार और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। शिबू सोरेन करीब दो महीने से बीमार थे। सोमवार की सुबह झारखंड के मुख्यमंत्री और शिबू सोरने के बेटे हेमंत सोरेन ने पिता के निधन की ख़बर दी। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उन्होंने लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं. आज मैं शून्य हो गया हूं।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शोरेन को श्रद्धासुमन अर्पित करने अस्पताल पहुंचे। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों सहित अनेक विशिष्टजनों ने सोरेन के निधन पर शोक व्यक्त किया है। झारखंड सरकार ने सात दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है।
शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति का एक बड़ा नाम थे। उनका जन्म साल 1944 में अविभाजित बिहार के हजारीबाग में हुआ था। एक सामान्य आदिवासी परिवार के युवक के झारखंड का शिल्पकार और दिशोम गुरुजी बन जाने की कहानी बहुत दिलचस्प है। अविभाजित बिहार के आदिवासी इलाकों में महाजनों का आतंक था। आदिवासी सूदखोरी के चक्र में फंसे हुए थे। इसके ख़िलाफ़ लड़ते हुए शिबू सोरेन के पिता सोबरन सोरेन की हत्या हो गई। उसके बाद शिबू सोरेन महाजनी प्रथा के खिलाफ बगावती बिगुल बजाकर विरोध के मैदान मे कूद पड़े। शिबू सोरेन जी ने धान कटनी आंदोलन चलाया। उन्होंने आदिवासियों को जागरूक किया कि धान लगाने वाला ही धान काटेगा और इस पर महाजनों का कोई अधिकार नहीं है।
यह आंदोलन 70 से 80 के दशक में बहुत बड़ा हो गया। उन्होंने झारखंड के किसानों, कामगारों और काश्तकारों को एकजुट किया और आदिवासियों को शोषण से मुक्त करवाने में अहम भूमिका निभाई। यही वजह है कि शिबू सोरेन को झारखंड के लोगों ने दिशोम गुरु की उपाधि दी। दिशोम का मतलब देश को दिशा देने वाला होता है और यहां देश का मतलब आदिवासी क्षेत्र से है। आदिवासी, सोरेन को अपने गार्जियन के तौर पर देखते हैं, क्योंकि उन्होंने उस समाज को दिशा दिखाने का काम किया। सोरेन ने सामाजिक बदलाव के साथ राजनीतिक बदलाव की भी अलख जगाई। इसके लिए उन्होंने साल 1973 में उन्होंने विनोद महतो और कामरेड एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। यह संगठन आदिवासियों की लड़ाई का प्रतीक बना और दशकों के संघर्ष के बाद झारखंड राज्य बना। बाद में शिबू सोरेन झारखंड के तीसरे मुख्यमंत्री बने।
शिबू सोरेन ने साल 1977 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन वे जीत नहीं पाए। शिबू सोरेन 1980 से 2019 तक दुमका से सांसद और विधायक चुने जाते रहे। वे दुमका लोकसभा क्षेत्र से आठ बार सांसद और जामा और जामताड़ा से एक-एक बार विधायक चुने गए। वहीं दो बार राज्यसभा के सांसद भी रहे। वरिष्ठ पत्रकार विनय कुमार कहते हैं कि शोरेन कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। झारखंड बनने के बाद साल 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें कोयला एवं खान मंत्री बनाया गया, लेकिन तीस साल पुराने जामताड़ा के एक मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी किए जाने की वजह से 24 जुलाई 2004 को उन्हें पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। हालांकि इस मामले में करीब एक महीने तक जेल में बंद रहने के बाद वे जमानत पर रिहा हुए। इसके बाद नवंबर 2004 को उन्हें फिर से केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन मार्च 2005 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद 2 मार्च 2005 को वे पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण महज 10 दिन के भीतर ही उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जनवरी 2006 में शिबू सोरेन को तीसरी बार केंद्रीय कोयला मंत्री बनाया। इस बार भी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले में उन्हें दोषी करार दे दिया। इस वजह से नवंबर 2006 को उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, लेकिन 2007 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने हत्या के इस मामले में उन्हें बरी कर दिया।” साल 2008 में झारखंड की मधु कोड़ा सरकार गिर गई। कांग्रेस, राजद और अन्य विधायकों के समर्थन से शिबू सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बने। पद पर बने रहने के लिए उन्हें विधायकी का चुनाव जीतना था, तमाड़ विधानसभा के उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। साल 2009 में झारखंड विधानसभा चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से शिबू सोरेन तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने।लोकसभा में यूपीए सरकार का समर्थन करने के चलते बीजेपी ने समर्थन वापस लिया और राज्य में तीसरी बार उनकी सरकार गिर गई।राजनीति के खेल की इन असफल पारियों के बावजूद शिबू सोरेन झारखंड के लोगों विशेषकर आदिवासियों के लिए ताजिंदगी दिशोम गुरुजी बने रहे और जीवन की अंतिम सांस तक उन्हें आदर और सम्मान मिलता रहा।