ज्ञान-धर्म को जीवन मे उतारने वाले महापुरुष कहलाते है : ऋषभ सागर

बालोद। ज्ञान और धर्म को समझने वाले महापुरुष नही होते बल्कि उसको जीवन मे उतारने वाले  ही महापुरुष कहलाते है। जिनका जीवन उदाहरण बन जाये, जो सद्गुणों का भंडार हो ऐसा व्यक्तित्व ही महापुरुष हो सकता है।
जैन संत ऋषभ सागर अंतगड सूत्र का वाचन करते हुए कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर कृष्णजी की महिमा का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि कृष्ण जी ने सदा धर्म और प्रेम को ही स्थान दिया। वे जहां भी जाते प्रेम बरसाते। धर्म का साथ देने उन्होंने धर्मयुद्ध करवाया। महाभारत के वे केन्द्र बिंदु थे किन्तु जीत का साराश्रेय पांडवों को दिया। श्रेष्ठ व्यक्ति वही है जो करता खुद है लेकिन श्रेय औरों को देता है।

संतश्री ने कहा कि उन्हें मक्खन बहुत प्रिय था, यहाँ पर मक्खन का अर्थ सार तत्व से है।जो सार तत्व है वो जहां से भी मिले जैसे भी मिले ग्रहण करना चाहिए। मक्खन की हंडी फोड़ने का आयोजन के पीछे यही उद्देश्य होता है कि अपने कर्मों की हांडी को फोड़कर उसमे से सार तत्व को ग्रहण करें। सार तत्व अच्छे संस्कार हैं,जहां संस्कार है वहां सुख,समृद्धि होती है। परमात्मा के बताए बातों की जब हम ही अवहेलना करते है तो पीछे बच्चों को गलत कैसे  ठहरा सकते है।उन्होंने कहा कि कृष्णजी के जीवन से सीख लेनी चाहिए जिन्होंने हर रिश्ते को बखूबी निभाई चाहे  दोस्ती का रिश्ता हो,परिवार का रिश्ता हो,या राजनीति हो।वे 22वे तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान के चचेरे भाई थे तथा जैन आगम के अनुसार अगले 24 तीर्थंकरों में से एक तीर्थंकर कृष्ण जी होंगे।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button