एमपी के जंगलों में टाइगर की सक्रिय मौजूदगी से इको सिस्टम सुधर रहाः सीएम
भोपाल में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ

खरी खरी संवाददाताता
भोपाल। वन संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और जनजातीय समुदायों की आजीविका जैसे अहम मुद्दों पर भोपाल में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में शुक्रवार से मंथन शुरू हुआ। मुख्यमंत्री डॉ. यादव तथा केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने दीप प्रज्ज्वलित कर तथा भगवान बिरसा मुंडा और वीरांगना रानी दुर्गावती के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यशाला का शुभारंभ किया।
भोपाल में नरोन्हा प्रशासन अकादमी में जनजातीय क्षेत्रों में वन पुनर्स्थापना, जलवायु परिवर्तन और समुदाय आधारित आजीविका पर प्रशासन अकादमी में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रधानमंत्री का धन्यवाद देते हुए कहा कि देश में विलुप्त हो रहे जीवों जैसे चीतों की पुर्नस्थापना हो रही है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के जंगलों में टाइगर की सक्रिय उपस्थिति के कारण इको सिस्टम सुधर रहा है। अब हमारे यहां चीता भी आ गया है। उन्होंने कहा कि किंग कोबरा सहित रैप्टाइल्स की प्रजातियों के संरक्षण के लिए भी व्यवस्था विकसित करने की आवश्यकता जताते हुए कहा कि इससे सर्पदंश की घटनाओं में कमी आएगी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि वन क्षेत्र में विद्यमान जनजातीय समुदाय के पूजा और आस्था स्थलों के संरक्षण के लिए उचित व्यवस्था की जाएगी। आवश्यकता होने पर केंद्र शासन से भी सहयोग प्राप्त किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि वन, आजीविका से संबद्ध विषय है। जनजातीय क्षेत्र में अपार वन संपदा उपलब्ध है। इसके प्रबंधन में ध्यान रखना होगा कि विकास से जनजातीय वर्ग के हित प्रभावित न हो। भारतीय जीवन पद्धति वनों पर आधारित रही है। वनों के प्रबंधन में औपनिवेशिक सोच से मुक्त होने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रकृति आधारित जीवन जीने से कई समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जाता है। प्रदेश में यद्यपि कोई ग्लेशियर नहीं है, किंतु प्राकृतिक रूप से वनों से निकलने वाली जल राशि से ही प्रदेश से निकलने वाली बड़ी नदियां आकार लेती हैं। मध्य प्रदेश से निकली सोन, केन, बेतवा, नर्मदा नदियां देश के कई राज्यों में जल से जीवन पहुंचा रही हैं। बिहार, गुजरात और उत्तर प्रदेश की प्रगति में प्रदेश के वनों से निकले इस जल का महत्वपूर्ण योगदान है केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि हमें प्रकृति के संरक्षण के लिए समुदाय आधारित योजनाएं तैयार करने की जरूरत है। केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि दुनिया में दो तरह के विकास मॉडल है। एक पश्चिम और दूसरा पूर्व। पश्चिम का विकास मॉडल मानव केंद्रित है, जबकि पूर्व का प्रकृति आधारित है। पश्चिम के मॉडल से साफ है कि इंसान जो भी बताए वह कचरा होगा, जबकि प्रकृति जो बनाएगी वह नेट जीरो होगा। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर निवासरत प्रत्येक व्यक्ति को ऊर्जा, अन्न और जल को सुरक्षित रखना होगा। पर्यावरण संरक्षण में सॉलिड वेस्ट और ई-वेस्ट मैनेजमेंट बड़ी चुनौती है। प्लास्टिक के उपयोग को कम करना और स्वस्थ जीवन शैली अपनाना आवश्यक है। यादव ने कहा कि विकास की इस धारा में वन और प्रकृति के संरक्षण को साथ लेकर चलना होगा। केंद्र सरकार ने कैपेसिटी बिल्डिंग के माध्यम से वनों में रहने वाले लोगों के जीवन में परिवर्तन के लिए कार्य किया है।