अमेरिकी अखबार का दावाः रा ने की थी मालदीव में तख्ता पलट की कोशिश
खरी खरी डेस्क
ऩई दिल्ली, 5 जनवरी। भारत के साथ साथ अप्रत्याशित रूप से मालदीव ने भी इस खबर को सिरे से खारिज कर दिया है कि भारत ने मालदीव में अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाने की कोशिश की थी।भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनलिसिस विंग यानी रॉ ने मालदीव में विपक्षी पार्टियों के नेताओं से वहाँ के मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू को हटाने पर भी चर्चा की थी।
अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट में मालदीव में सत्ता बदलने की भारत की कोशिशों के दावों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिसायी हंगामा खड़ा कर दिया। हालांकि भारत और मालदीव दोनों के इस रिपोर्ट को खारिज करने से स्थिति संभल गई है। भारत के दौरे पर आए मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला ख़लील ने कहा, “हम समझते हैं कि कुछ लोग दोनों के रिश्तों में तनाव पैदा करना चाहते हैं। हमने हाल के दिनों में वॉशिंटगन पोस्ट की ख़बर देखी हैं। हमें नहीं पता कि उन्हें ये ख़बर कहां से मिली।” उन्होंने कहा, “ये फर्ज़ी, झूठी, बेबिनुयाद और निराधार है। इसमें कोई सच्चाई नहीं है। हम और भारतीय सरकार समझते हैं कि हम आपस में अच्छे और मज़बूत रिश्ते रखने के लिए काम कर रहे हैं। वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत ने 2023 के मालदीव चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार भारत समर्थक इब्राहिम सोलिह को राष्ट्रपति बनाए रखना चाहती थी। रिपोर्ट ने अनुसार, जब इब्राहिम सोलिह चुनाव हार गए तो मोहम्मद मुइज़्ज़ू को हटाने पर चर्चा हुई थी। भारतीय विदेश मंत्रालय की साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल से वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ”वॉशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट मालदीव पर है और दूसरे में पाकिस्तान का ज़िक्र है। रिपोर्टर और न्यूज़पेपर दोनों सवालों के घेरे में हैं।” उन्होंने कहा, ”भारत के प्रति इनकी शत्रुता साफ़ झलकती है। इनकी गतिविधियों के पैटर्न को आप देख सकते हैं। इनकी विश्वसनीयता क्या है, यह आप पर छोड़ देते हैं। इन रिपोर्टों को लेकर हमारी कोई चिंता नहीं है।”
वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट पर मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भी प्रतिक्रिया दी थी। मोहम्मद नशीद ने कहा था, ”मैंने दिलचस्पी के साथ वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट पढ़ी। मैं राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ किसी भी गंभीर साज़िश से अनभिज्ञ था। हालांकि कुछ लोग हमेशा साज़िश से आक्रांत रहते हैं। भारत कभी इस तरह की सोच का समर्थन नहीं करेगा। भारत ने हमेशा मालदीव में लोकतंत्र का समर्थन किया है। भारत ने कभी हम पर दबाव नहीं बनाया है।”दिलचस्प है कि जिस समय वॉशिंगटन पोस्ट ने मालदीव में चुनाव प्रभावित करने का आरोप भारत पर लगाते हुए रिपोर्ट की, उसी वक़्त मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला ख़लील भारत के दौरे पर थे। ख़लील की मुलाक़ात भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से हुई। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, भारत और मालदीव ने एक फ्रेमवर्क को अंतिम रूप दिया है, जिसमें दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में स्थानीय मुद्रा के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने की बात है। एस जयशंकर ने कहा कि भारत हमेशा मालदीव के साथ खड़ा रहा है। जयशंकर ने कहा कि मालदीव के साथ द्विपक्षीय व्यापार में स्थानीय मुद्रा के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने पर समझौता हुआ है।
वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, ‘डेमोक्रेटिक रीनूअल इनिशिएटिव’शीर्षक से एक आंतरिक दस्तावेज़ हमें मिला है। मालदीव की विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने 40 सांसदों के सामने रिश्वत की पेशकश की थी, इनमें मुइज़्ज़ू की पार्टी के सांसद भी शामिल थे। इन सांसदों से मुइज़्जू़ के ख़िलाफ़ महाभियोग लाने के लिए कहा गया था। इस दस्तावेज़ में मालदीव की सेना के 10 सीनियर अधिकारी, पुलिस ऑफिसर और तीन शक्तिशाली क्रीमिनल गैंग को भुगतान करने की बात थी ताकि ये मुइज़्ज़ू को हटाने में मदद करें। अलग-अलग पक्षों और साज़िशकर्ताओं को 8.7 करोड़ मालदीव के रुफिया के भुगतान की बात थी। इतनी रक़म ये भारत से चाहते थे।” वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, ”महीनों की गोपनीय बातचीत के बाद साज़िशकर्ता मुइज़्ज़ू के ख़िलाफ़ महाभियोग लाने के लिए ज़रूरी वोट जुटाने में नाकाम रहे और भारत ने फिर कोशिश आगे नहीं बढ़ाई। मालदीव में भारत और चीन के प्रभाव को लेकर दोनों देशों के बीच होड़ की स्थिति रहती है।”भारतीय उपमहाद्वीप में छोटे देशों को लेकर ऐसी होड़ देखने को मिलती है। दोनों बड़े देश आसान क़र्ज़, इन्फ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट और राजनीतिक समर्थन के ज़रिए अपना दबदबा बढ़ाना चाहते हैं। ऐसी कोशिश सार्वजनिक के साथ गोपनीय भी होती है।”
वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, ”चीन के साथ भारत की प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही है। दशकों से भारत पूरे दक्षिण एशिया में मानवीय मदद के साथ धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक आंदोलन को समर्थन देता रहा है। इसके बदले में भारत की चाहत रहती है कि इन देशों के नेता उसके साथ खड़े रहें, लेकिन भारत अब लोकतांत्रिक आदर्शों से अलग इन देशों में पाकिस्तान या चीन से कथित क़रीबी रखने वाले नेताओं के ख़िलाफ आक्रामक रुख़ अपना रहा है।” वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, ”मालदीव से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले रॉ के पूर्व प्रमुख हर्मिस थराकन ने कहा, “चाहे भारत हो, चीन हो या कोई भी अन्य देश, मालदीव में पैर जमाना हिंद महासागर और अरब सागर के एक बड़े हिस्से में उसकी क्षमताओं को बड़े स्तर पर बढ़ाएगा। मालदीव जैसे अपने सबसे क़रीबी पड़ोसियों के साथ सुरक्षित और स्थिर संबंध बनाए रखना भारत के लिए ज़रूरी है।” ”हालांकि उन्होंने कहा है कि उन्हें ताज़ा घटनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है।